लघुतम समापवर्त्य
(Least Common Multiple)

LCM and HCF in Hindi | ल स और म स पर आधारित प्रश्न

अपवर्त्य (Multiple)

जो-जो संख्याएं किसी दी हुई संख्या से पूरी-पूरी विभाजित हो जाती हैं उन्हें दी हुई संख्याओं का अपवर्त्य कहते हैं। जैसे एक दी हुई संख्या 5 हो तो 5 से पूरा-पूरा विभाजित होने वाली संख्या 5, 10, 15, 20, 25,……इत्यादि हैं। अतः 5, 10, 15,20, 25.. इत्यादि को 5 का अपवत्त्य कहेंगे। अपवत्त्य को गुणज भी कहा जाता है।

समापवर्त्य (Common Multiple)

जिन- जिन संख्याओं को दी हुई दो या दो से अधिक संख्यायें पूरा पूरा विभाजित कर दें। उन – उन संख्याओं को दी हुई संख्याओं का समापवर्त्य कहते हैं । जैसे दी हुई संख्याएं 4, 6, 8 क्रमश: 24 ,48 72 ,96 इत्यादि को पूरा पूरा विभाजित कर देती हैं ।अतः 24, 48, 72, 96 ….….इत्यादि को 4, 6, 8 का समापवर्तक कहेंगे।

लघुतम समापवर्त्य(Least Common Multiple)

समापवत्यों में जो सबसे छोटा होता है उसे ही लघुतम समापवत्त्य कहते हैं। दूसरे शब्दों में जिस छोटी से छोटी संख्या को दी गयी सभी संख्याएं पूरा-पूरा विभाजित कर देती हैं उसे दी हुई संख्याओं का लघुतम समापवत्य कहते हैं। जैसे 4, 6, 8 के समापवत्यों 24, 48, 72. 96 इत्यादि में 24 सबसे छोटा समापवत्त्य है अतः 4, 6, 8 का लघुतम समापवत्त्य 24 हुआ।
दो संख्याओं के म०स० तथा ल०स० में सम्बन्ध
पहली संख्या * दूसरी संख्या = दोनों का म०स० x दोनों का ल० स०

लघुतम समापवर्त्य ज्ञात करने की विधियाँ

गुणनखण्ड विधि (Factor Method)

इस विधि में सर्वप्रथम दी हुई संख्याओं का अभाज्य गुणनखण्ड करके उन गुणनखण्डों को अधिकतम घात के रूप में लिखते हैं। अन्त में अधिकतम घात वाले गुणनखण्डों का आपस में गुणा कर देते हैं। इस प्रकार प्राप्त गुणनफल अभीष्ट ल०स० होता है ।जैसे 8, 12, 20 का ल० स० ज्ञात करना-

भाग की प्रथम विधि (Division Method-I)


सर्वप्रथम दी हुई संख्याओं को क्रमशः एक पंक्ति में लिखकर बारी-बारी से 2,3, 4……. से भाग देते हैं। जब किसी संख्या में भाग न जाय तब उसे ज्यों का त्यों लिख देते हैं। अगले क्रम में उसके भाजक से भाग देते हैं। जब सबका भागफल 1 प्राप्त हो जाय तब सभी भाजकों का आपस में गुणा कर लेते हैं। इस प्रकार प्राप्त गुणनफल ही अभीष्ट ल०स० होता है। जैसे 12, 15, 18 का ल०स० ज्ञात करना

भाग की द्वितीय विधि (Division Method-II)


सामान्यतः इस विधि का प्रयोग तब करना चाहिए जब दी हुई संख्याओं का आसानी से गुणनखण्ड न हो सके। इसमें सर्वप्रथम भाग विधि से दो संख्याओं का म० स० ज्ञात करते हैं, तत्पश्चात् सूत्र ‘पहली संख्या x दूसरी संख्या = दोनों का म०स० x दोनों का ल०स० ‘ से उनका ल०स० ज्ञात करते हैं। यदि तीन संख्याओं का ल०स० ज्ञात करना हो तो सबसे पहले उपयुक्त विधि से दो संख्याओं का ल० स० ज्ञात किया जाता है। तत्पश्चात् इस ल०स० और तीसरी संख्या की उपर्युक्त विधि से ल०स० ज्ञात करते हैं। जैसे 396 तथा 576 का ल०स० ज्ञात करना।

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